Book Reflection ( पुस्तक समीक्षा )



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'जानकीदास तेजपाल मैनशन' अलका सरावगी जी का पाँचवाँ उपन्यास है। 'जानकीदास तेजपाल मैनशन' में विस्थापन के विविध पहलुओं में अन्तर्राष्ट्रीय विस्थापन, आंतरिक विस्थापन, विकास से उत्पन्न विस्थापन आदि आते हैं। साथ ही विस्थापन से उत्पन्न त्रासदी भी व्यक्त होती है। प्रस्तुत उपन्यास में अलका जी ने एक पुरानी इमारत की कहानी के ज़रिए विस्थापन समस्या को प्रस्तुत किया है। हालांकि वह छोटे छोटे घटनाओं से प्रस्तुत किया गया है। लेखिका ने सामाजिक विस्थापन की अपेक्षा वैयक्तिक विस्थापन को अधिक महत्व दिया है।

कुलमिलाकर कहें, तो अलका सरावगी का उपन्यास 'जानकीदास तेजपाल मैनशन' नवीन शिल्प से गढ़ा गया एक औपन्यासिक रचना है। प्रस्तुत रचना में लेखिका ने विस्थापन आदि तमाम विषयों को सिर्फ उठाया ही नही है बल्कि उनके साथ लगभग न्याय भी किया है।

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